रविवार, 1 फ़रवरी 2009

एक गांव का स्वाबलंबन

भारत के गाँवों को लेकर महात्मा गाँधी का एक सपना था, पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर, साफ़, सुंदर, और सपनों की कल्पना जैसा गाँव। महाराष्ट्र राज्य के सांगली ज़िले का कवठे पिरान गाँव शायद ऐसा ही एक गाँव है. इस गाँव की बदली तस्वीर के पीछे महाराष्ट्र सरकार की एक अनूठी परियोजना का हाथ है. गाँवों में बदलाव लाने के लिए राज्य सरकार ने महाराष्ट्र के जाने माने संतों के नाम से संत गाड़गे बाबा स्वच्छता अभियान और संत टुकड़ो जी महाराज स्वच्छता ग्राम नाम की स्पर्धा शुरु की है. निवेदिता पाठक इसी गाँव से एक दिन बिताकर लौटी हैं.एक अनूठी प्रतियोगिताइस प्रतियोगिता के तहत गाँव में शराब बंद करना, गाँव में सरकार के पैसे के बिना ही गाँववालों द्वारा गाँव की सड़कों, गटर, शौचालयों आदि का निर्माण करना, उनको पूरी तरह स्वच्छ रखना आदि जैसे नियम हैं. ये प्रतियोगिता तीन चरणों में होती है जिसमें गाँवों को डिवीजन, ज़िला और राज्य स्तर पर हिस्सा लेना होता है. जीतने पर गाँवों को 15 लाख, 5 लाख और 25 लाख का इनाम दिया जाता है. प्रतियोगिता कड़ी होती है क्योंकि इन में बहुत-सी ग्राम पंचायतें हिस्सा लेती हैं. इस योजना के पीछे मकसद है कि गाँवोंवालों के अंदर प्रतियोगी भावना जगाकर उन्हीं के द्वारा गाँवों के अंदर सुधार लाना. यूँ तो गाँववालों ने प्रतियोगिता में जीत के लिए गाँव को सुधारने का काम करना शुरु किया लेकिन बाद में ये उनके जीवन का हिस्सा बन गया. वैसे इस गाँव के लिए सबसे पहली चुनौती थी गाँववालों को शराब और मटके की लत से बाहर निकालना.शौंचालयों की सुधरी सूरतगाँववालों में ये अहसास जागाया गया कि कोई भी व्यक्ति शौच के लिए बाहर नहीं जाएगा. आज गाँव के हर घर में संडास या फ्लश की लैटरीन है. गाँव में एक कड़ा नियम लागू कर दिया गया है कि जो भी व्यक्ति बाहर शौच करता पाया गया उसको सौ रुपये का दंड देना पड़ेगा. यह गाँव का सैनीटेशन पार्क है जिसमें कई तरह के संडास के मॉडल दिखाए गए है, इन मॉडलों के मुताबिक बननेवाले शौंचालयों की कीमत छह सौ रूपए से लेकर छह हज़ार तक है. गाँववाले अपनी हैसियत के अनुसार मॉडल को चुन सकते हैं.सराहनीय हैं ऐसी कोशिशगाँव में पानी के लिए नालियाँ बनी हुई है. शौच के लिए सैप्टिक टैंक बने हुए हैं. गाँव का सारा मल और गंदा पानी (लगभग छह लाख लीटर) जो पहले नदी में जाता था अब उसको बाहर बने तालाब में इकट्ठा किया जाता है . इस पानी को पंप से उठाकर केले और गन्ने की खेतों की सिंचाई की जाती है. जिन गाँव वालों के घरों में सैप्टिक टैंक नहीं होता उन गाँव वालों को हिदायत दी जाती है कि वे कोई इंतजाम करें जिससे उसके घर का पानी वापस ज़मीन में चला जाए. इसके अलावा ये भरसक कोशिश की जाती है कि अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ रखा जाए. गाँवों में एक स्मृति वन बनाया गया है जिसमें गाँवों में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी याद में एक पेड़ लागाया जाता है और उसकी राख को नदी में बहाने की बजाए उसका खेतों में बिखराव कर दिया जाता है. गाँवों में डेढ़ लाख वृक्ष लगाने की भी योजना है. हर घर के आगे पेड़-पौधे लगाना आवशयक है.