नजरिया / राजेश मिश्र
कौन है भ्रष्टाचारी और कहां है भ्रष्टाचार ?
यह सवाल आज भी ज्वलंत है कि अन्ना हजारे के द्वारा उठाए गये जन आन्दोलन से क्या भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिट जयेगा? क्या इस बिल के पास हो जाने से भ्रष्टाचार जड़ से साफ़ हो जाएगी ? यदि हम भ्रस्टाचार कि बात करें तो सवाल उठता लाज़िनी है कि आखिर यह भ्रष्टाचार है क्या ?
राम लीला मैदान के मंच पर भ्रस्टाचार के इस आन्दोलन में डाक्टर से लेकर इंजिनियर तक और वकील से लेकर पत्रकार और पढ़े लिखे बेरोजगार नवयुवकों के प्रतिशोध को केवल ऐसा लगता था कि जैसे केवल सरकार ही भ्रष्ट है और बाकी सारे ईमानदार है।
यदि थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो साफ़ दिखेगा- ,
दिखेगा कि रिटेल मेडिकल स्टोर वाले बिना फार्मासिस्ट के दवा बेच रहे हैं / कि, किराना स्टोर वाले नकली व मिलावटी सामान बेच रहे हैं / कि दूध से निर्मित खाद्य पदार्थ बेचने वाले मिलावटं कर रहे है / कि प्राईवेट डाक्टर जनता को लूट रहे हैं / कि वकील अपने मुवक्किल को चूस रहा है / कि धर्म की आड़ में रंग बिरंगे कपड़े पहनकर बाबा लोग अपना व्यवसाय चला रहे हैं / कि प्राईवेट क्षेत्रों में तकनीकी शिक्षा बेचने वाले छात्रों को धेखा दे रहे हैं / कि पेट्रोल बेचने वाले पम्प मालिक डीजल पेट्रोल में मिलावट कर रहा है।
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो अब भी अनुत्तरित है। अब देखना यह है कि लोकपाल के बाद हम इन भ्रष्टाचार आचरणों से कैसे निपटेगें?
हम आप से पूछना चाहते हैं कि क्या केवल सफेद कपड़े पहनने से या हाथ में झंडा उठा लेने से, या धरना प्रदर्शन करने से भ्रष्टाचार के लीकेज़ को रोका जा सकता है ?