गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

न्यूटन और आइंस्टीन के सूत्रों से बड़े हैं 
नारी शक्ति और नवरात्र के सूत्र 

भारत ही एक मात्रा ऐसा देश है, जहां स्त्री  के शक्ति की भी उपासना की जाती है। यहां के उत्सवों में दुर्गा पूजन, तथा कन्या पूजन का विशेष महत्व माना गया है। हमारे ध्र्म ग्रथों में शिव से शक्ति का मिलन एक बहुत ही धर्मिक तथा बड़ी घटना के रुप में देखा गया है। यह मिलन सृजन तथा विघटन का रुप भी निर्धरित करता है। यानी नये कामों की शुरुआत का वातावरण नवरात्रा कहलाती है।
माता का महत्व क्या है? ये समझने के लिए हम सबों को भगवान श्री राम का जीवन देखना चाहिये। श्री राम ने वहां जन्म लिया जहां उन्हें तीन माताओं की ममता मिली, भगवान श्रीकृष्ण की जीवनी देखें तो उन्होंने भी दो माताओं की ममता का स्वाद चखा। पर हमें तो एक-एक ही मां मिली है, यदि उस ममता को भी हम पा ना सकें तो हमसे बड़ा दुर्भाग्य किसका होगा। शास्त्रों में वर्णन  है की  पुत्र  कुपात्र हो सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती। आज समाज में भले ही नकारात्मकता अध्कि हो, अन्याय बढ़ रहे हों, भारतीय संस्कृति में देवी के रूप में मान्य स्त्रियों  के सम्मान पर प्रहार हो रहा हो, ऐसे समय में जरूरत है न्याय-प्रतीकों को सबल बनाने की।
और ये सबल तभी हो सकता है जब हम देवी को जानें। जाने... उसे, जिसके बिना जीवन आगे नहीं बढ़ सकता। क्योंकि  देवी को जीवन और जगत का स्वरूप ही नहीं, कारक, पालक और निवारक भी माना गया है। देवी ही लक्ष्मी-रूपा हैं तो सरस्वती-रूपा भी। शक्ति या श्रधा  से लेकर कामना-रूपों तक, प्रत्येक भाव में देवी को स्थापित किया गया है।
इसी भाव भंगिमा को हम सब हर साल मनाते हैं । पर माता को पूजने वालों ने क्या कभी अपने आप से यह पूछा है कि जिस मां ने उन्हें जन्म दिया है, या जिस मां ने उनके माता-पिता को जन्म दिया है, कहीं उनमें से किसी का , आपसे दिल तो नहीं दुखा है? क्या आपने कभी कन्या को जन्म लेने से रोका है, या किसी के ऐसे अपराध् में सहभागिता निभाई है? यदि हां तो इस नवरात्रा में ये संकल्प लें कि अब ऐसा नहीं होगा।
...क्योकि संकल्प से हर नकारात्मक परिस्थितियों  को भी बदला जा सकता है। ...क्योंकि नवरात्रि त्योहार है उस मातृ-शक्ति के प्रति अपनी कृतज्ञता का जिसने प्रकृति को सृजन में शामिल किया। इसी सम्मलिनता में मां के अनेक रूप हैं।
मां... मां... इन शब्दों में कापफी गहरे आघ्यात्मिक अर्थ छुपे हुए हैं। मैं समझता हूं कि ये सूत्र इस मानव जीवन के लिए उतने ही कीमती हैं जितने विज्ञान के लिए न्यूटन और आइंस्टीन के सूत्र। ... क्योकि इन्हीं सूत्रों से हम मातृरूपेण, शक्तिरूपेण, बुद्धिरूपेण, लक्ष्मीरूपेण, के साथ जीवन में आगे बढ़ते हैं। और हम तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब ‘या देवी देवी सर्वभूतेषु  हमारे साथ हो।