रविवार, 25 जनवरी 2009

एक अश्वेत इतिहास का सच

1955: अमेरिकी अश्वेत नागरिक रोजा पार्क्स ने बस में श्वेत नागरिकों के लिए आरक्षित सीट खाली करने से इंकार किया. उसे गिरफ्तार कर लिया गया. मार्टिन लुथर किंग ने अश्वेतों से बस का बहिष्कार करने को कहा. एक साल तक अश्वेतों ने बस में यात्रा नहीं की.
· 1963: लूथर किंग ने अहिंसक आंदोलन चलाने की बात की. उनका प्रसिद्ध “मेरा एक सपना है” भाषण सुनने के लिए ढाई लाख लोग जुटे.
· 1964: राष्ट्रपति लिंडन जॉंनसन ने नागरिक अधिकार कानून पर हस्ताक्षर किए. सिडनी पोइटर, ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली पहली अश्वेत अभिनेत्री बनी.
· 1965: अश्वेत आंतकवादी नेता माल्कम 10, की हत्या कर दी गई.
· 1966: स्टोकी कार्मिशेल ने अहिंसक आंदोलन शुरू किया. हुई न्यूटन और बोबी सीएल ने पुलिस की बर्बरता से अश्वेतों को बचाने के लिए ब्लेक पेंथर पार्टी बनाई. एडवर्ड ब्रुक पहले अश्वेत सांसद बने.
· 1967: मुक्केबाज मोहम्मद अली विएतनाम युद्ध में बतौर अमेरिकी सैनिक भाग लेने से इंकार किया. उन्होने कहा किसी विएतनामी ने उनको कभी “निगर” नहीं कहा. थर्गुड मार्शल सर्वोच्च न्यायालय के पहले अश्वेत न्यायाधीश बने.
· 1968: मार्टिन लूथर किंग की हत्या कर दी गई.
· 1983: ग्वेन ब्लुफोर्ड पर अश्वेत अंतरिक्ष यात्री बने.
· 1989: कोलिन पावेल पहले अश्वेत सेनाध्यक्ष बने.
· 1990: वर्जिनीया ने डगलस वाइल्डर के रूप में देश का पहला अश्वेत गवर्नर चुना.
· 1992: 4 श्वेत लोगों ने एक अश्वेत मोटरबाइक चालक रूडनी किंग पर हमला कर मार दिया. ज्यूरी ने चारों श्वेत लोगों को बरी कर दिया. इसके बाद, श्वेत और अश्वेत लोगों के बीच हुए दंगो में 65 लोग मारे गए.
· 1997: टाइगर वुड्स मास्टर गोल्फ टुर्नामेंट जीतने वाले पहले अश्वेत गोल्फ खिलाडी बने.
· 2001: अश्वेत कोलीन पावेल सेक्रेटरी ऑफ स्टेट बने.
· 2002: हेल बेरी सर्वेश्रेष्ठ अभिनेत्री का ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली पहली अश्वेत अभिनेत्री बनी.
· 2005:कोंडोलिसा राइस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट बनने वाली पहली अश्वेत महिला बनी. 2008: बराक ओबामा देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने.

अफीम और अफगानिस्तान

अफगानिस्तान तालिबानी शासन के दौरान आतंकवादी गतिविधियों के केन्द्र के रूप मे कुख्यात रहा था. तालिबानी शासन के खात्मे के बाद भी अफगानिस्तान मे अल कायदा के आतंकवादियों की सक्रीय भूमिका रही है. इसके अलावा अफगानिस्तान सदा से अफीम के उत्पादन और तस्करी के लिए भी कुख्यात रहा है. इस वजह से अफगानिस्तान सयुंक्त राष्ट्र संघ मे गैरकानूनी राष्ट्रों की सूचि मे शामिल है. अफगानिस्तान मे अफीम के उत्पादन और उसकी तस्करी से सम्बंधित कुछ तथ्य:
· दूनिया मे ccके कुल उत्पादन का 95% हिस्सा केवल अफगानिस्तान मे उगाया जाता है.
· अधिकतर अफीम के खेत तालिबानी लडाकों के कब्जे में रहे हैं
· तालिबानी लडाके अफीम की तस्करी से प्राप्त आय का उपयोग शस्त्र खरीदने मे करते हैं
· अफीम का सबसे बडा खरीददार देश अमरीका है
· अफीम एक नशीला पदार्थ है, परंतु उसका उपयोग दवाई, अल्कोहोल मे भी होता है
· अफगानिस्तान मे अफीम उगाने वाले किसान को प्रति किलो अफीम के बदले करीब 300 डॉलर मिलते हैं
· यही अफीम अफगानिस्तान के बाहर 800 डॉलर प्रति किलो के भाव से बिकता है
· यूरोपीय देशों मे अफीम के द्वारा हेरोइन नामक नशीला पदार्थ बनने के बाद इसकी किमत 16000 डॉलर प्रति किलो तक पहुँच जाती है
· अफगानिस्तान मे सन 2006 मे 6630 टन अफीम का उत्पादन हुआ था

शायद अभी समय लगेगा खोया आत्मविश्वास पाने में

गत शनिवार के The Economic Times मुख पृष्ठ पर खबर थी कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 200 अरब डॉलर को पार चुका है. आपको ज्ञात होगा कि 2003 में पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 100 अरब डॉलर तक पहुँचा था, और इन चार साल में बढकर दुगना हो गया है. हाँलाकि अभी भी भारत विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में विश्व की बढ रही अर्थव्यवस्थाओं में सातवें नम्बर पर आता है. चीन निसन्देह भारत से काफी आगे है जिसका विदेशी मुद्रा भंडार भारत से कहीं अधिक है. चीन इस मामले में सिर्फ जापान से पीछे है. इसके बाद रशिया, होंगकॉंग, ताइवान और कोरिया आते हैं. लेकिन फिर भी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से बढ रहा है. कुछ साल पहले तक तो इसकी कल्पना करना भी हास्यास्पद लग सकता था. आज से 15 साल पहले भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका था और देश के पास सिर्फ हफ्ते भर तक निर्यात किया जा सके इतना ही पैसा बचा था (स्रोत : The Economic Times ). लेकिन फिर नरसिंह राव सरकार के द्वारा शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण ने देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर ला दिया. उनके और मनमोहन सिंह के उस समय के इस दुस्साहसी कदम को देश हमेंशा याद रखेगा. नरसिंह राव ऐसा काम कर गए थे जो उनके आने वाले उत्तराधिकारीयों के लिए वापस खींचना सम्भव ही नहीं था. और आर्थिक उदारीकरण का वह दौर आज भी जारी है. ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर चर्चा हो सकती है. चर्चा इस बात पर भी हो सकती है कि आर्थिक उदारीकरण का लाभ क्या समाज के एक विशेष तबके को ही मिल रहा है? क्या अमीर और गरीब के बीच की खाई बढती ही जा रही है और अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब हो रहे है. या गरीबों की स्थिति सुधर रही है. यह बहस शायद अंतहीन साबित हो, पर देश की आर्थिक स्थिति और इस वजह से देश की दुनिया में साख पहले से काफी बेहतर है इसे शायद सभी स्विकार करेंगे. यह बात अलग है कि हमारे नेता इस स्थिति का फायदा देश को पहुँचाने में विफल रहे हैं. क्योंकि हम आज भी खुद से कहीं कमजोर देशों के आगे हाथ फैलाते से दिखते हैं. दो हजार वर्षों की गुलामी ने हमारे डी.एन.ए. बिगाड दिए हैं. शायद अभी समय लगेगा खोया आत्मविश्वास पाने में.