रविवार, 26 अक्तूबर 2014

लहर के बहाव में जनतंत्र
कहते है वर्ष बीतता है और बीतता जाता हैै भारत भी एक वर्ष है। हांलाकि वर्ष का एक अर्थ खंड भी होता है। और समय को खंडित करती हुई लहरें अपना इतिहास बना ही लेती  हैं। इन दिनों देश में भी एक कथित लहर चल रही है। मोदी लहर। यह लहर प्रायोजित है, कमजोर है, तेज है। ऐसे बहुतेरे आंकलन सामने आ रहे हैं। पर, इस लहर का हमारे जनतांत्रिक प्रणाली पर क्या असर होगा इसका आंकलन करना भी आवश्यक  है।
यदि गौर से देखा जाये तो भारत में लहरों का एक इतिहास रहा है। चुनावी लहरों का इतिहास और उनकी उपलब्ध्यिां आपकी भी याददाश्त में बरकरार होगी। हमने कांग्रेस की लहर देखी है, जनता पार्टी की लहर देखी है, राम लहर की भी लहर देखी है। अब देश में जब से मोदी लहर चली है, तो उससे न केवल प्रमुख दल कांग्रेस का ही सफाया हो रहा है बल्कि क्षेत्रीय पार्टियों के लिए भी अपने अस्तित्व की रक्षा करना  मुश्किल होता जा रहा है। हरियाणा एवं महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों ने एक बार पिफर ये संकेत दिए हैं कि वक्त बदल रहा है।
और बदलते हुये वक्त में विज्ञान का एक यह सत्य यह भी है कि कहीं सामान्य से कम दाब हो जाता है तो कहीं अधिक,  तभी तूफान , आंधी या लहरें उठती हैं। और इन्हीं  लहरों से नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्ति  नायक बनकर उभरता हैं। बिल्कुल भारतीयों फिल्मों के नायक की तरह।
कहते है न कि नायक चाहे वो, जिस भी किरदार में हों उसके प्रदर्शन सर्वगुणी होने चाहिये। साइकिल से लेकर हवाई जहाज तक चलाने आना चाहिये। नोक-झोक तकरार, डायॅलाग्स के खास अंदाज होने चाहिये। नरेंद्र मोदी के भी प्रदर्शनों को देखकर यही कहा जा सकता है कि वे वास्तविक जिंदगी के साथ-साथ राजनीति के भी नायक बन चुके हैं। फिर, बात चाहे भूटान और नेपाल और ब्रिक्स सम्मेलन में भारत का दबदबा स्थापित करने की हो। कुर्ता- पायजामा पहनकर एयर इण्डिया के विमान में चढ़ने का सीन हो या  जापान में सूट पहन कर बांसुरी और ड्रम बजाने से लेकर  स्कूलों के बच्चों से मिलने का खास अंदाज हो। इन्हीं सब बातों को देखते हुये उन्हें एक बेहतर नायक का दर्जा तो दिया ही जा सकता है।
सच तो यह भी है कि इतिहास के जितने भी नायक हुए हैं, सभी ने पहले खुद को आदर्श पुरुष बनाया हैं, तभी लोग उनका अनुसरण करते हैं। महात्मा गांधी के एक आह्वान पर पूरा देश चल पड़ता था।  मोदी मन्त्र से सभी सम्मोहित हो जाते हैं...।  पूरा देश उन्हें आशा भरी नजरों से देख रहा है। इसे करिश्माई नेता नहीं तो और क्या कहेंगे,जिसके वाणी में जादू है कि वह कहते है वोट फॉर  इंडिया, लोग उनकी पार्टी को वोट दे आते हैं। वो कहते हैं , सबका साथ-सबका विकास, लोग उनके साथ हो लेते है...।
नरेन्द्र मोदी मंत्र मारते हैं , जनता मुघ्ध हो जाती है...। शायद यही वजह है कि यूपी थराथरा रहा है, कांग्रेस का पोर-पोर टूट चुका है। ठाकरे बंधुओं  की ठसक ठस गयी है। शरद पवार का पावर गुल हो गया है। हरियाणा में चौटाला  खानदान की चतुराई धरी  की धरी  रह गयी और हुडा की पुकार चित्तकार में बदल गयी ।
बहरहाल नरेंद्र  मोदीजी को आप जिस भी नजर से देखिये, पर यदि उन्हें समझना है तो पहले सुनी -सुनाई, पूर्वाग्रहों से आपको बाहर निकलना होगा, क्योंकि मैं समझता हूं व्यक्ति जब दुनिया से दूर होता है शायद तभी वो खुद के करीब भी होता है।
श्री नरेंद्र  मोदी पर आधरित इन्हीं मुद्दों पर 224 पृष्ठ की मेरी नई किताब हिंदी और अंग्रेजी में आ रही है।  शीर्षक नहीं बता रहा हूं, यदि बता दिया तो उत्सुकता कुछ कम हो जायेगी। पर आपका आशीर्वचन चाहता हूं। 
आपका राजेश मिश्र

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

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