सोमवार, 13 अप्रैल 2009

भाजपा

भारत के राजनीतिक पटल पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उदय का इतिहास आज़ादी के पूर्व में जाता है, जब वर्ष 1925 में डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का गठन किया.

आरएसएस का गठन स्वयंसेवी संगठन के रूप में हुआ लेकिन इसकी छवि कट्टरपंथी हिंदू संगठन के रूप में उभरी.

जनवरी, 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद कई लोगों ने इसके लिए आरएसएस और इसकी सोच को ज़िम्मेदार ठहराया.

तत्कालीन राजनीतिक स्थिति को देखते हुए संघ परिवार ने राजनीतिक शाखा के तौर पर वर्ष 1951 में भारतीय जन संघ का गठन किया.

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके नेता बने. इसी साल हुए पहले आम चुनाव में जन संघ को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया.

पहला दशक

गठन के पहले दशक में जन संघ ने अपने संगठन और अपनी विचारधारा को मज़बूत बनाने पर ज़ोर दिया. उसने कश्मीर, कच्छ और बेरुबारी को भारत का अभिन्न अंग घोषित करने का मुद्दा उठाया. साथ ही ज़मींदारी और जागीरदारी प्रथा का भी विरोध किया.

वर्ष 1967 में राजनीतिक ताकत के रूप में जन संघ ने अपनी उपस्थिति का एहसास कराया. इस वर्ष पहली बार कांग्रेस का वर्चस्व टूटता दिखा और कई राज्यों में उसकी हार हुई.

जन संघ और वामपंथियों ने मिल कर कई राज्यों में सरकार बनाई. इसी दौरान पंडित दीन दयाल उपाध्याय की अगुआई में जन संघ ने कालीकट सम्मेलन में भाषा नीति घोषित की और सभी भारतीय भाषाओं को सम्मान देने की बात कही.

हालाँकि इसके कुछ ही दिनों बाद पंडित दीन दयाल उपाध्याय मुग़लसराय रेलवे स्टेशन पर मृत पाए गए.

वाजपेयी को कमान

वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव से पहले वाजपेयी को जन संघ की कमान मिली. उन्होंने चुनावी घोषणापत्र में गरीबी पर चोट का नारा दिया लेकिन चुनावों में उसे कोई ख़ास सफलता नहीं मिल सकी.

तब इंदिरा गांधी की अगुआई में कांग्रेस की सरकार बनी. लेकिन कुछ वर्षों बाद ही इंदिरा सरकार पर भ्रष्टाचार और तानाशाही के आरोप लगने लगे. जय प्रकाश नारायण ने इसके ख़िलाफ़ मुहिम चलाई और जन संघ भी इसमें शरीक हुआ.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वर्ष 1975 में देश में आपात काल की घोषणा कर दी जिसका व्यापक विरोध हुआ. नतीजा 1977 के चुनावों में देखने को मिला. कांग्रेस की हार हुई और जनता पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी जिसमें जन संघ भी शामिल था.

लेकिन भारतीय राजनीति का ये पहला प्रयोग विफ़ल हो गया और दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर गठबंधन टूट गया. मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें इंदिरा की अगुआई में कांग्रेस फिर सत्ता पर काबिज हो गई.

भाजपा का गठन

राज नारायण और मधु लिमये जैसे समाजवादियों ने जनता पार्टी और आरएसएस दोनों की सदस्यता रखने का विरोध किया. इससे जनता पार्टी में बिखराव हुआ. वर्ष 1980 में जन संघ ने अपने को पुनर्गठित किया. जनता पार्टी में शामिल इसके नेता एक मंच पर आए. नई पार्टी का जन्म हुआ और इसका नाम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) रखा गया. 1984 के चुनावों में इसे दो सीटें मिलीं.

लेकिन वर्ष 1989 में जनता दल के साथ सीटों के तालमेल से इसे 89 सीटें मिलीं. हालाँकि मंडल आयोग की रिपोर्ट को लेकर मतभेदों के बाद भाजपा ने सरकार से हटने का फ़ैसला किया.

इसके बाद 1990 में भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन तेज़ कर दिया. पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा शुरू की जिससे पार्टी को काफी लोकप्रियता मिली.

1991 के चुनावों में पार्टी ने 120 सीटों पर सफलता हासिल की. हालाँकि 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद उस पर सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने के आरोप लगे और चार राज्यों में उसकी सराकरें बर्ख़ास्त कर दी गईं.

दिल्ली में दस्तक

दिल्ली में भाजपा की पहली सरकार वर्ष 1996 में बनी लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सबसे कम दिनों के प्रधानमंत्री साबित हुए. वो बहुमत नहीं जुटा सके और महज 13 दिनों में सरकार गिर गई. 96 के चुनावों में पार्टी को 161 सीटें मिली थीं.

इसके बाद 1998 में पार्टी ने 182 सीटें हासिल की. इसी समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए का स्वरूप सामने आया. सरकार में समता पार्टी, अन्नाद्रमुक, शिव सेना, अकाली दल और बीजू जनता दल शामिल हुई. तेलुगूदेशम पार्टी ने इसे बाहर से समर्थन दिया.

लेकिन ये सरकार भी 13 महीने ही चल सकी और अन्नाद्रमुक के समर्थन वापस लेने से सरकार गिर गई.

लेकिन ठीक एक साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की अगुआई में एनडीए फिर सत्ता में आई और वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने. ये सरकार पूरे पाँच साल चली लेकिन वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में सत्ता की चाबी फिर कांग्रेस के हाथों में गई.

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