शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

आह दिल्ली!

राजधानी दिल्ली! जहां सुबह होते ही हर व्यक्ति किसी गुलदस्ते की तरह सज- संवर कर घर से बाहर होता है और गहराती सांझ में मुरझाया हुआ लौटता है।
दिल्ली- जहां हर व्यक्ति को अपना वजूद कायम करने और रखने के लिये किसी न किसी रूप में खपना पड़ता है। इन्हीं में कुछ ऎसे अभागे भी होते हैं जिनकी नियती जिन्दगी भर खपने रहना ही होती है और उसके खपने का सिलसिला उस दिन पूरी तरह से खत्म हो जाता है, जब उसकी जिस्म की मशीनरी पूरी तरह से जबाव दे देती है। शायद नियती पर ठिठुरता हुआ यह कर्म दिन , महीने के साथ चलता रहता है, मौसम भले ही सर्दी का हो लेकिन सुर्ख होठों से पाला सबका पडता है।

अभी पिछले दिनों की ही बात है इंडिया टीवी के एक तथाकथित बडे पत्रकार से मिलने गया था। लौटते वक्त लाल बत्ती पर मेरी गाडी खड़ी हुई थी। सड़क के किनारे सिर पर राजस्थानी पगड़ी और घुटनों तक धोती पहने एक राहगुजर को देखता हूं। उसके ठीक पीछे एक जवान औरत की शरारती आँखें हमें घूरती हैं।

सिंगनल खुलता है, मैं आगे निकल पडता हूं। शायद वह व्यक्ति मुझसे कुछ कहना चाह रहा था , यह सोचकर पार्किंग में खडा हो जाता हूँ , मेरा अनुमान ठीक निकला।

'बाबू कुछ पैसे दे दो न!'

जेब में पडे फुटकर उसके हवाले कर पूछता हूं"-'यहाँ क्या करते हो ?

अँधा बांटे रवडी, चुन चुन कर खाये वाला काम करता हूं, बाउजी।

एक दिन में कितनी रेवडी बांट लेते हो?

लेग लुगाई कर के दो तीन सौ!

यह काम तो तुम गांव में भी कर सकते थे?

ये न थी हमारी किस्मत साब?

तभी तो दिल्ली आया हूं।मैनपुरी का वाशिंदा हूं साब। नौ दस बीधा जमीन थी, छोडो साब, आप यह सब क्यों पूछ रहे हो?

चल रे चल ... वह उस औरत की ओर इशारा करता है। औरत पलट कर चल देती है ।

अरे सुनो मैं आवाज लगा देता हूं।ये कौन है तुम्हारी बीवी? मै पूछता हूं, यह सोचकर कि किसी जगह कुछ जानकार मित्रों से कह कर कहीं इसे दिहाडी पर लगवा दूंगा । लड़की अबतक सड़क के उस पार जा चुकी है।लड़की के जाते ही वह कहता है "बेटी है बाबू, ऎसी कुलखनी औलाद भगवान किसी को न दें! अविवाहित बेटी का कुंवारापन टूट जाए तो बाप के लिए गाँव में जगह कहां बचती है बाबू "? इसलिये दिल्ली आ गया हूं।

बेटी की शादी कर दी तुमने?

"अरे बाबूजी अब शादी करने से क्या फर्क पडता है?

मतलब...

इतनी कम कमाई उसपर इसके दो बच्चे भी तो है!

वह मेरा कंधा बड़े इत्मीनान से झकझोर कर कहता है,मेरी नजर में तो मेरी बिटिया आज भी कुंवारी है बाबूजी!आओ न तुम्हारे थके हुये जिम की मालिश करवा दें।

मेरी बेटी कर देगी न! महताना कुल बीस रूपए दे देना।

पीछे किसी गाडी की लंबी हार्न सुनकर मैं आगे बढ़ जाता हूं ।

देखता हूँ सडक के उसपार एक सैंद्रो कार का दरवाजा खुलता है और खटक से बंद हो जाता है।उसकी बेटी अब सड़क पर नहीहै और मेरे पास से उसका बाप भी जा चुका होता है।

अनायास मेरे दिल से निकल पड़ता है "आह दिल्ली"।

कोई टिप्पणी नहीं: