शनिवार, 12 जून 2010

आखिर ऐसे भाषण का सच क्या है

भाषण   देना  किसे अच्छा नहीं लगता. गला फाड़ भाषण तो आपने भी सुने होगी .उब भी गए होंगे. है न !
 भाषण तो अक्सर उबाऊ होते ही हैं क्योंकि सुनने वालों को मालूम होता है कि बोलने वाला अपनी ही बातों पर यक़ीन नहीं करता.




अगर लिखित भाषण की कॉपी पढ़नी हो तो यह और भी बोझिल काम है मगर कुछ दिन पहले पुलिस की भूमिका पर केंद्रीय गृह मंत्री का पूरा भाषण पढ़ गया.



गृह मंत्री पी चिदंबरम की एक बात ने मेरी दिलचस्पी जगा दी, उन्होंने पुलिस वालों से कहा-'अपनी वर्दी गर्व से पहनिए.'



पता नहीं, कितने पुलिस वाले होंगे जिन्होंने गर्व और रौब का अंतर समझा होगा, कितने होंगे जिन्होंने दाग़दार वर्दी को गर्व करने लायक़ बनाने के बारे में सोचा होगा.



गर्व करने की वजह बताते हुए गृह मंत्री ने उनसे कहा--"भले ही आप लोगों को हर तरफ़ से आलोचना का सामना करना पड़ता है, आम नागरिक, वकील, जज, पत्रकार, टीवी एंकर, एनजीओ वाले सभी आपकी निंदा करते हैं लेकिन मुसीबत पड़ने पर हर किसी की पुलिस की ज़रूरत महसूस होती है".



उन्होंने कहा कि "पुलिस की मौजूदगी से ही लोग आश्वस्त हो जाते हैं, पुलिस की तैनाती से क़ानून-व्यवस्था क़ायम हो जाती है क्योंकि पुलिस वाले मददगार दोस्त और रक्षक हैं".



आम जनता गृह मंत्री से कितनी सहमत होगी इस पर शायद बहस की भी गुंजाइश नहीं है, न जाने कितने पुलिस वाले उनकी बातों को सच मान रहे होंगे.



उन्होंने पुलिस वालों से कहा-"आप आलोचनाओं से न घबराएँ, जो कई बार सही, लेकिन अक्सर ग़लत होते हैं."



गृह मंत्री का काम ही है पुलिस का मनोबल बढ़ाना, चिदंबरम साहब से उम्मीद भी नहीं की जा रही थी कि वे पुलिस की वैसी ही आलोचना करें, जैसी दूसरे करते हैं.



चिदंबरम चिंतित हैं कि देश में पुलिस वालों और थानों की भारी कमी है, उन्होंने ये भी कहा कि एक अरब से अधिक वाले देश की 'पुलिसिंग' बहुत कठिन काम है जबकि देश में माओवादी हिंसा जैसी बड़ी चुनौती सामने खड़ी है.



देश के गृह मंत्री को पुलिस से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि पुलिस उनकी बात मानती है, पुलिस के तौर-तरीक़ों में किसी बदलाव की ज़रूरत उन्हें नहीं महसूस हो रही है.



जो लोग पुलिस की मौजूदगी में सुरक्षित और आश्वस्त महसूस नहीं करते, यह उनकी निजी समस्या है, देश के गृह मंत्री उनके लिए कुछ नहीं कर सकते. आप क्या सोचते हैं इस बारे में हमें बताइए .

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