मंगलवार, 18 नवंबर 2008

पिछले दिनों दिल्ली में वेब दुनिया से जुडे लोगों के लिये एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का आयोजन हुआ

पिछले दिनों दिल्ली में वेब दुनिया से जुडे लोगों के लिये एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का आयोजन हुआ और इंटरनेट और डिजिटल मीडिया से जुडे जिस भी व्यक्ति या संस्थान ने उस अवसर को गँवाया उसने निश्चय ही कुछ गँवाया। 16 अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक डिज़िटल एम्पावरमेण्ट फाउण्डॆशन के तत्वावधान में दक्षिण एशिया के स्तर पर मंथन पुरस्कारों का आयोजन किया गया और इसमें तीन दिनों तक पुरस्कार की श्रेणी में शामिल किये गये संस्थानों और व्यक्तियों सहित अनेक गैर सरकारी संगठनों, व्यावसायिक कम्पनियों ने अपने अनुभव लोगों के साथ बाँटे। इस पूरे आयोजन से जो निष्कर्ष मूल रूप में निकल कर आया वह मुख्य रूप से यह था कि डिजिटल युग आ चुका है जो व्यापक स्तर पर परिवर्तन करने जा रहा है और यह परिवर्तन सोच के स्तर से कार्य करने के स्तर सहित जीवन के नय क्षेत्रों को भी प्रभावित करने जा रहा है। पूरे आयोजन में उन लोगों को पुरस्कारों की श्रेणी में शामिल किया गया था जिन्होंने डिजिटल मीडिया में कुछ नये प्रयोग किये हैं और इस श्रेणी में लोकमंच के सहायक शशि सिंह को उनके संयुक्त उपक्रम पोड भारती के लिये सांस्कृतिक और मनोरंजन श्रेणी में चुना गया था जो उन्होंने हिन्दी ब्लागिंग के आरम्भिक पुरोधाओं में से एक देवाशीष चक्रवर्ती के साथ आरम्भ किया है। पोड भारती डिजिटल मीडिया के एक आयाम पोडकास्टिंग का प्रयोग है। हालाँकि पोड भारती को यह पुरस्कार नहीं मिल सका पर दक्षिण एशिया स्तर के किसी आयोजन और भारी प्रतिस्पर्धा के मध्य अपना स्थान बना पाना भी एक विशेष उपलब्धि रही।
तीन दिनों के इस आयोजन में जो कुछ विषय विशेष रूप से उभर कर आये उनमें से एक यह था कि डिजिटल मीडिया को एक प्रभावी और सक्षम माध्यम मान कर प्रशासन जनता के साथ निचले स्तर पर सम्पर्क स्थापित करने के लिये इस माध्यम को विश्व स्तर पर अपनाने को कटिबद्ध हो रहा है। 1990 के दशक से आरम्भ हुई सूचना क्रांति को अब जनोपयोगी बनाने की दिशा में चिंतन आरम्भ हो गया है और डिजिटल विभाजन जो कि साधन सम्पन्न और बिना साधन वालों के मध्य है उसे पाटने का प्रयास किया जा रहा है। तीन दिन के इस कार्यक्रम में जिन भी गैर सरकारी संस्थानों और व्यावसायिक कम्पनियों ने अपने विचार और कार्यक्रमों का उल्लेख किया उससे एक बात स्पष्ट थी कि अब इस तकनीक को हर स्तर पर आगे ले जाने के प्रयास हो रहे हैं और उनमें व्यावसायिक के साथ साथ जनोपयोगी प्रयास भी हैं। डिजिटल मीडिया के विस्तार से सूचना एक उद्योग में परिणत हो जायेगा और सम्भवतः भारत में मनोरंजन के पश्चात सबसे बडा कोई उद्योग पनपने जा रहा है तो वह सूचना उद्योग है। इस पूरे आयोजन से कुछ उत्साहजनक संकेत भी मिले जैसे कि सूचना के व्यापक सम्भावना वाले उद्योग को देखते हुए विश्व स्तर पर कम्प्यूटर बनाने वाले कम्पनियाँ इस बात पर गम्भीरता से विचार कर रही हैं कि किस प्रकार 100 डालर की राशि वाला कम्प्यूटर लोगों को उपलब्ध कराया जा सके ताकि डिजिटल क्रांति से नीचे स्तर तक भी लोगों को अपने साथ जोडा जा सके और सूचना उद्योग अधिक व्यापक हो सके। इस सम्बन्ध में प्रशासनिक स्तर पर शासन को अधिक पारदर्शी और जनोन्मुख करने के लिये विकासशील देशों की सरकारें अपने आँकडों और डिजिटल स्वरूप देने और गैर सरकारी संगठनों की सहायता से शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी ढाँचों को सशक्त करने के लिये डिजिटल क्रांति की ओर बडी आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। तीन दिन के इस आयोजन मे जिस प्रकार कुछ राज्यों की सरकारों और गैर सरकारी संगठनों ने अपने कार्य दिखाये उससे यह विश्वास किया जा सकता है कि यदि तकनीक का आधारभूत ढाँचा सामान्य लोगों की पहुँच में आ जाये को इस तकनीक के सहारे शिक्षा और स्वास्थ्य की दिशा में अच्छी प्रगति हो सकती है। जैसे आन्ध्र प्रदेश राज्य की ओर से पालिटेक्निक संस्थानों के पाठ्यक्रम को जिस प्रकार 14,000 अध्यापकों ने 100 दिनों के भीतर तैयार कर उसे अधिक सहज और जनोन्मुखी बनाने के साथ एक साथ हजारों अध्यापकों को तकनीक के साथ जोड दिया उससे यह सम्भावना बलवती होती है कि सूचना क्रांति के उपयोग से कुछ क्रांतिकारी परिणाम भी आ सकते हैं। इसी प्रकार कर्नाटक के एक छोटे से गाँव में कुछ बच्चों के साथ प्रयोग हो रहा है कि किस प्रकार गणित के फोबिया से उन्हें मुक्ति दिलाकर विषय को सहज बनाया जा सके। हमारे समक्ष ज्ञान दर्शन और इग्नू का उदाहरण है किस प्रकार तकनीक के उपयोग से शिक्षा को जन जन तक कुछ हद तक पहुँचाया जा सकता है।
डिजिटल मीडिया के भविष्य़ को देखते हुए अनेक व्यावसायिक कम्पनियाँ विज्ञान और गणित जैसे विषयों को चित्रों के द्वारा और अधिक सही ढँग से समझाने के प्रयास में लगी हैं और इस सम्बन्ध में उन्हें डिजिटल क्रांति के दौर में आधारभूत ढाँचों और तकनीक से सस्ते होने और अधिक लोगों तक पहुँच पाने की अपेक्षा है। पूरे आयोजन में जो एक बात अधिक उत्साहजनक थी वो यह कि अब डिजिटल क्रांति को अपने अपने कारणों से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने का प्रयास आने वाले दिनों में किया जायेगा और शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन और जनता के अधिकारों के लिये कार्य करने वाले संगठनों की माँग सूचना क्रांति के दूसरे चरण में बढने वाली है जब सामग्री या कंटेंट को लेकर व्यापक प्रयास हो रहा है।
तीन दिन के इस आयोजन में पूरा समय इस बात पर दिया गया कि किस प्रकार कंटेंट सृजित किया जाये क्योंकि डिज़िटल मीडिया और सूचना क्रांति के पास सबसे बडा संकट कंटेन को लेकर है क्योंकि तकनीक को लोगों तक पहुँचा कर उसे बाजारोन्मुखी तब तक नहीं बनाया जा सकता जब तक तकनीक प्रयोग करने वाले के लिये कोई उपयोगी जानकारी उस तक न पहुँच पा रही हो। परंतु सूचना क्रांति के इस चरण का सर्वाधिक लाभ यह है कि कंटेन्ट या सामग्री को लेकर सारी मारामारी स्थानीय स्तर तक पहुँचने की है। सूचना क्रांति के इस दूसरे चरण में स्थानीय भाषाओं, स्थानीय संस्कृतियों और अधिक जनसंख्या वाले समूहों का बोलबाला होने वाला है।
डिजिटल मीडिया का नया स्वरूप पत्रकारिता को भी प्रभावित करने वाला है। अब इंटरनेट पर टेलीविजन, मोबाइल पर टेलीविजन के साथ फिल्मों का प्रीमियर भी मोबाइल सेट पर अति शीघ्र ही हो सकेगा। लेकिन इन सबके मध्य डिजिटल मीडिया के समक्ष सबसे बडा संकट अब भी सामग्री का है और विविधता का दावा करने वाले और अपने संसाधनों का बडा अंश सामग्री के लिये व्यय करने वाली बडी बडी कम्पनियाँ भी अभी भी उन्नत सामग्री के अभाव से ग्रस्त हैं और इसका इस बडा कारण अब भी भारत में लेखक या बुद्धिजीवी वर्ग का तकनीक से भागना रहा है। जो लोग तकनीक के प्रसार की इस बात के लिये आलोचना करते हैं कि यह ऊटपटाँग चीजें परोस रहा है उन्हें डिजिटल मीडिया में सामग्री को लेकर छाए इस शून्य का लाभ उठाना चाहिये परंतु अधिकतर लोग तकनीक सीखने के स्थान पर उसे कोसने में अधिक सहजता अनुभव करते हैं। लेकिन आने वाले दिनों में सामग्री का भी एक बडा बाजार बनेगा और साथ ही अनुवाद का भी।
सूचना क्रांति के इस नये दौर में पत्रकारिता का क्या स्वरूप होगा यह भी एक प्रश्न है। आज भी भारत में विशेषकर हिन्दी पत्रकारिता रूढिवादी है और तकनीक को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। 40 से अधिक या 50 के आस पास की अवस्था के पत्रकार अब भी ब्लागिंग और इंटरनेट के मह्त्व को स्वीकार कर पाने का साहस नहीं कर पा रहे हैं और यही कारण है कि अनेक पत्रकार अज्ञानतावश वेब आधारित पत्रकारिता को ड्रायिंग रूम की अनैतिक पत्रकारिता भी कहने में नहीं हिचकते पर शायद वे भूल जाते हैं को वेब केवल एक तकनीकी परिवर्तन है और पत्रकारिता का मूल भाव कि तथ्यों का वास्तविक मूल्याँकन करने की परिपाटी वही है। भारत में तो वेब आधारित पत्रकारिता और ब्लागिंग तो पिछले कुछ वर्षों में आयी है पर पश्चिम में तो यह एक वैकल्पिक पत्रकारिता का स्वरूप ले चुकी है और तथाकथित मुख्यधारा की पत्रकारिता भी इसके सन्दर्भों का हवाला देती है और इसे प्रामाणिक मानती है।
डिजिटल मीडिया के प्रभाव से पत्रकारिता में स्थानीय वैश्विकता की नयी प्रवृत्ति का समावेश होगा अर्थात विश्व के किसी भी कोने में बैठा कोई व्यक्ति अपनी स्थानीयता से जुड सकेगा और साथ ही स्थानीय व्यक्ति विश्व की गतिविधियों से जुड सकेगा। हिन्दी पत्रकारिता इसी परिवर्तन के सन्दर्भ में रूढिवादी है और वह केवल स्थानीय विषयों को उठाने को अधिक समर्पित और जमीन से जुडी आदर्श पत्रकारिता मान कर चलती है। डिजिटल मीडिया के इस दौर में लोगों की वैश्विक पहुँच और आकाँक्षा हो गयी है और इन दोनों में संतुलन बनाने का प्रयास आगे इस युग में हिन्दी पत्रकारिता को करना सीखना होगा। उदाहरण के लिये यदि झारखण्ड और छत्तीसगढ के गाँवों में और बिहार की बाढ की वास्तविकता विदेशों में बैठा भारतीय या देश के अन्य हिस्से में बैठा भारतीय जानना चाहता है तो वहीं भारत का व्यक्ति सूचना क्रांति के चलते विश्व से जुड गया है और वह यह जानने को भी उत्सुक है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में क्या चल रहा है, या फिरअंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौन से घटनाक्रम हैं जो भारत को प्रभावित करते हैं। हिन्दी पत्रकारिता में अब भी नयी प्रवृत्ति को अपनाने का प्रयास करने के स्थान पर उसकी आलोचना करने की प्रवृत्ति अधिक दिख रही है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि हिन्दी पत्रकारिता में नयी पीढी अभी अपना स्थान नहीं बना पायी है।

कोई टिप्पणी नहीं: